( स्व.श्रीमती सुषमा स्वराज जी और मनमोहन सिंह जब हुए थे आमने सामने ) |
नई दिल्ली: पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) का आज यानी 26 सितंबर को जन्मदिन है. 10 साल तक प्रधानमंत्री डॉ. सिंह के बारे में कहा जाता था कि ऐसा देश को एक ऐसा प्रधानमंत्री मिला है जो कुछ बोलते ही नही हैं. कई बार उनकी चुप्पी देश में बेचैनी बन जाती है. लेकिन ऐसा भी नहीं था कि वह कुछ बोलते नहीं थे वह भाषण देने के बजाए हमेशा संयमित जवाब देते थे. लेकिन यूपीए-1 और यूपीए-2 के दौरान हालांकि हमेशा बड़े मुद्दों पर बोलने के लिए उस समय कई केंद्रीय मंत्री रहे डॉ. प्रणब मुखर्जी या फिर पी. चिदंबरम मोर्चा संभालते थे. लेकिन एक बार ऐसा मौका आया जब मनमोहन सिंह ने सबको चौंकाते हुए अपने भाषण की शुरुआत शायरी से शुरू की. उनका यह अंदाज पहली बार संसद में सबने देखा था और खुद विपक्ष की नेता रहीं स्व.श्रीमती सुषमा स्वराज जी भी मुस्कराए बिना नहीं रह पाईं. 2011 में दोनों नेता सदन में आमने सामने थे. मनमोहन सिंह ने इकबाल का एक शेर पढ़ा, ‘माना कि तेरे दीद के काबिल नहीं हूं मैं, तू मेरा शौक देख, मेरा इंतजार देख.' इस पर स्व.श्रीमती सुषमा स्वराज जी ने कहा था, ‘‘ना इधर-उधर की तू बात कर, ये बता कि काफिला क्यों लुटा, हमें रहज़नों से गिला नहीं, तेरी रहबरी का सवाल है.'
इसी तरह पंद्रहवीं लोकसभा में ही एक बहस के दौरान सिंह ने भाजपा पर निशाना साधते हुए मिर्जा गालिब का मशहूर शेर पढ़ा, ‘हम को उनसे वफा की है उम्मीद, जो नहीं जानते वफा क्या है.' इसके जवाब में स्व.श्रीमती सुषमा स्वराज जी ने कहा कि अगर शेर का जवाब दूसरे शेर से नहीं दिया जाए तो ऋण बाकी रह जाएगा. इसके बाद उन्होंने बशीर बद्र की मशहूर रचना पढ़ी, ‘कुछ तो मजबूरियां रही होंगी, यूं ही कोई बेवफा नहीं होता.' इसके बाद स्व.श्रीमती सुषमा स्वराज जी ने दूसरा शेर भी पढ़ा, ‘तुम्हें वफा याद नहीं, हमें जफा याद नहीं, जिंदगी और मौत के दो ही तराने हैं, एक तुम्हें याद नहीं, एक हमें याद नहीं.' स्व.श्रीमती सुषमा स्वराज जी के इस शेर के बाद सदन में मौजूद सदस्य अपनी हंसी नहीं रोक पाए थे.